Saturday, November 6, 2010

Meri Kalpana

फूलों का जीवन 

बगीचे में फूल खिले, 
देख उन्हें दुःख मिटे,
लगा, हुआ किसी का जन्म,
और हुआ मन प्रसन्न,
उन्हें महसूस कर लगा,
है कोई मेरा सगा,
जब भी बैठूं उदास,
वे ही देते मेरा साथ,
वे लगते कितने आकर्षित,
हो जाता मन प्रफुल्लित,
पर जब वे मुरझाते,
मेरे प्राण सूख जाते,
मैं मन में सोचती,
क्या हर प्राणी की मृत्यु होती ?
इश्वर की है लीला अपरम्पार,
कोई न जान पाया जीवन का सार | 
                                               - प्रियंका देवधर 



4 comments:

  1. hmmm...nice...short...precise and to the point...
    Meri Kalpana ki jagah "Meri Aakanksha" would hv been more appropriate coz ye feeling jyada jhalak rahi hai frm ur poem

    Liked it :)

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  2. kavi is kavita se fool ke prati apna lagav vyakt kar rahe hai...par uske saath woh ek gahra message bhi chod rahe hai ki zindagi mein sab ko ek na ek din we all hav to die...so ant mein kavi thode mayus ho jate hai...bt a good poem keep it up :)

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  3. Nature heals the Human agonies.. Gr8 thought it is

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